गलतफहमी लेखनी कहानी -15-Jan-2024
गलतफहमी
सुचिता अपनी रसोई में खड़ी अपनी सासू मां के लिए दूध गरम कर रही थी कि तभी उनकी पड़ोसन सविता जी ने डोरबैल बजाई।
डोर बैल की आवाज सुनते ही सुचिता जी ने गैस बंद की और दरवाज़ा खोलने पहुँची।
दरवाजा खुलते ही सामने अपनी पडौसिन सबिता जी को देखकर बोली," आओ दीदी ! ।
सबिता अन्दर आगई और बोली," मै तुझे बताने आई थी कि एक बस मकर संक्रांति पर गंगा सागर जारही है। मैं अपनी सीट बुक करा रही थी तब सोचा कि तुझे भी पूछ लूं। तेरी सीट भी बुक करबा दूँ? क्यौकि कुछ दिन पहले तू कह रही थी कि तेरा बड़ा दिल है गंगा स्नान का तो तुझे बताने आई हूं पांच दिन का टूर है परसों जाना है 17 तारीख को वापसी है । मैं तो जा रही हूँ तू भी चल साथ भी हो जाएगा और तेरा गंगा स्नान का सपना भी”।
“नहीं दीदी , मैं कैसे जा सकती हूँ ? अम्मा को किसके सहारे छोडूंगी?”
“क्यों ? सारा दिन के लिए तो तूने नर्स रखी हुई है ना ? पांच दिन की ही तो बात है। नर्स से कह देना वह रात में भी रुक जाएगी । और फिर आकाश भैया भी तो है उनकी भी तो माँ है।और तेरे बेटा बहू भी हैं तो फिर क्यों नहीं जा सकती..?” सबिता ने ताना मारते हुए पूछा।
“ नहीं बहिन इन पर मैं भरोसा नहीं कर सकती हूँ क्यौकि वह जहाँ बातौ में मस्त होकर बैठ गये फिर वह सब कुछ भूल जाते हैं।रही बहूकी बात वह अपनी ड्यूटी से काफी देर से आती है और फिर नर्स तो सिर्फ देखभाल ही कर सकती है खाना तो मैं ही खिलाती हूँ अब आप ही बताइए मेरे जाने के बाद यह कौन करेगा ?"
“ सुचिता तेरी सास की कितनी उम्र होगई हे?" सविता ने पूछा।
"यही कोई 80- 82 साल की हो गई है । बहिन इससे आपका क्या मतलब है?"
"हे राम 82 साल! पता नहीं और कितना जीएगी यह ? सुचिता तू भी कुछ पुण्य करके अपना अगला पिछला सुधार ले। कल क्या होगा कुछ नहीं पता ?"
“ आप कैसी बात करती हो बहिन, अम्मा को अब इस उम्र में सहारे व देखभाल की सख्त जरूरत है । ऐसे समय उनको बेसहारा छोड़कर मैं गंगा नहाने कैसे चली जाऊँ? और रही बहू की बात उस पर मैं इतनी बड़ी जिम्मेदारी कैसे डाल दूँ?"
" सुचिता तू कुछ ज्यादा ही इमोशनल होगई? "
"बहिन मुझे इस घर में ब्याह कर आए तीस साल से ज्यादा होगए। मैं जब ब्याह के आई थी तब मैं स्कूल में अध्यापिका थी। मेरी सास की सास ने मुझे नौकरी छोड़कर अपनी गृहस्थी सम्भालने की सलाह दी थी लेकिन मेरी सास ने मेरा साथ दिया था ,मुझे घर की सब जिम्मेदारियों से उन्होंने फ्री रखा था। बच्चे उन्हीं के हाथों से पले - बड़े हुए हैं, मैं भी आराम से उनके भरोसे नौकरी करती रही हूँ तो आज जब उन्हें हमारी जरूरत है तो मैं उन्हें इस तरह अकेला छोड़कर गंगा नहाने चली जाऊँ अपना परलोक सुधारने..? नहीं बहिन जब अम्मा खुश होकर हर रोज मेरे सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देती हैं तो मेरा लोक परलोक सब सुधर जाता है और अगर वह खुश है, शांति से जी रही है तो मेरा तो रोज ही गंगा नहाना हो जाता है और फिर सुना है न आपने ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ बस मेरे लिए तो यही गंगा है। आप बैठो मैं चाय लाती हूं आपके लिए।“ इतना कहकर वह किचन में चली गई।
सविता उसको जाते हुए देखती रह गई। उसको अब तक जो यह गलतफहमी थी कि पूजा-पाठ व गंगा नहाने से पुण्य मिलता है। सुचिता का तर्क सुनकर उसकी सारी गलतफहमियां दूर होगई । सविता ने घर जाकर अपने सास ससुर की सेवा करने व उनकी बात मानने का संकल्प लिया। वह गंगा स्नान के लिए अपने सास ससुर को लेकर गई।
अब उसकी समझ में यह भी आगया था कि "जो मन चंगा तो कठौती में गंगा"
आज की दैनिक प्रतियोगिता हेतु रचना।
नरेश शर्मा " पचौरी "
Rupesh Kumar
21-Jan-2024 04:59 PM
Nice one
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Madhumita
21-Jan-2024 04:44 PM
Nice
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Khushbu
18-Jan-2024 07:56 PM
Very nice
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